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हिंदी कहानियां

भूमि ही क्या संसार के जितने भी पदार्थ हैं धन सम्पति हैं मकान आदि हैं, इनमें से कुछ भी तुम्हारा नही हैं.

एक दिन उनकें मन में विचार आया, उनहोंने सोचा कि क्यों न वे अपने शिष्यों में ही योग्य वर की तलाश करें.

शिक्षा- जब हमे कोई चीज नही मिलती हैं, तो हम उसकी बुराई बताकर मन को दिलासा देते हैं.

कुछ देर तक वे भूमि के साथ कान लगाए रहे, फिर सीधे बैठ गये और गंभीर वाणी में बोले- यह भूमि तो कुछ और ही कह रही हैं.

श्रीकृष्ण और सुदामा बचपन के मित्र थे. श्रीकृष्ण का सम्बन्ध धनाढ्य परिवार से था. वह यदुवंशी क्षत्रिय थे. सुदामा एक निर्धन ब्राह्मण के पुत्र थे.

चाहे कोई कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो उन्हें बुद्दि के बल पर पराजित किया जा सकता हैं- लीजिए शुरू करते हैं यह बच्चो के लिए शिक्षाप्रद कहानी-

स्त्रेरह बिचिया ल्याई म्हारा बीर-टमरकटूँ

और हम लोगों का सामूहिक विनाश भी नही होगा, क्युकि प्रजा पर कृपा करने वाला राजा निरंतर बढ़ोतरी प्राप्त करता हैं. सिंह उनकी बात मान गया.

दूसरा व्यक्ति तत्काल चिल्ला उठा- महाराज यह बिलकुल झूठ बोल रहा हैं. यह भूमि इसके भाग में नही बल्कि मेरे भाग में आती हैं, इसलिए इसका असली मालिक मैं हूँ.

वह हर बार अपनी सोंच में भरकर एक घास का तिनका लेके आती, उस वृक्ष की डाल पर उन्हें रखती और फिर वापिस चली जाती.

ये रचना कल्पनिक है इसका वासतविकता से कोई लेना नहीं है। इसका मुख्य उद्देश्य पाठकों का मनोरंजन करना है। इस कहानी के मुख्य किरदार है समर्थ और ईशाना, जो एक दूसरे से प्यार करने लगते हैं, लेकिन उनकी ...

महात्मा जी ने उत्तर दिया, हाँ वह अवश्य बोलती हैं, परन्तु उसकी आवाज तुम लोग नही सुन सकते हो, हम सुन सकते हैं, किन्तु यह बताओं कि भूमि जो निर्णय देगी, क्या तुम दोनों को वह मान्य होगा?

सोने का बाजोटा और सोना का वजनी मुकुट दे दे. मै इस कुरज को छोड़ दुगा.

प्रजापति की बात सुनकर दोनों परेशान हुए, एक दूसरे का मुह ताकने लगे. समस्या यह थी कि खाएं तो कैसे खाएं?

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